चंद्रयान-२
तो दोस्तो आज हम बात करने वाले है चंद्रयान-२ के बारे मैं।
इससे पहले हम चंद्रयान का इतिहास देख लेते हैं।
2008 के चंद्रयान-1 के सफल प्रक्षेपण के बाद भारत ने Chandrayaan-2 को चांद पर भेजने की घोषणा कर दी , सभी जानते हैं कि सन 2008 में भारत ने अपना पहला चंद्र अभियान शुरू किया था जिसमें Chandrayaan-1 को चाँद की कक्षा (Orbit) में भेजने में भारत ने अपने पहले ही कोशिश में सफलता हासिल की थी लेकिन आपको बता दें कि यह यान चंद्रमा पर नहीं उतरा था।
लेकिन चंद्रयान-2 मिशन पहले मिशन से काफी ज्यादा अलग है क्योंकि इस मिशन में भारत अपने चंद्रयान में Lander Orbiter और Rover को भी चांद पर लेकर जाने वाला था।
लेकिन चंद्रयान -२ में ऐसा क्या ख़ास है जो इसे पूरी तरह अलग बनाता है।
well ,
चंद्रयान-२ यह भारत में 10 साल के अंदर चंद्रमा पर जाने वाला दूसरा मिशन है।
चंद्रयान-२ का लांचर पूरी तरह से स्वदेशी है और इसे भारत में निर्मित GSLV Mk-III (जीएसएलवी मार्क-III) Rocket द्वारा अंतरिक्ष में भेजा गया है।(जिसे बाहुबली राकेट भी कहते है)
चंद्रयान-२ में 3 मॉड्यूल शामिल है जिनमें लैंडर, ऑर्बिटर और रोवर शामिल था।
चंद्रयान-२ में लेंडर को "विक्रम" नाम दिया गया , वहीं रोवर का नाम "प्रज्ञान" रखा गया है जिसका वजन 3.8 टन यानी कि 3800 किलो है।
अब ये सब तो ठीक है पर ये मिशन इतना ख़ास क्यों है, तो फ्रेंड्स
1. ये चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र पर एक Soft लैंडिंग का संचालन करने वाला पहला अंतरिक्ष मिशन था ।
2. पहला भारतीय मिशन, जो घरेलू तकनीक के साथ चंद्र सतह पर एक soft लैंडिंग का प्रयास करता।
3. पहला भारतीय मिशन, जो घरेलू तकनीक के साथ चंद्र के क्षेत्र का पता लगाने का प्रयास करता।
4. विश्व का 4th देश जो चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा।
चंद्रयान2 को जानने से पहले हमे लैंडर, ऑर्बिटर और रोवर क्या है ये समजना जरूरी है।
लैंडर क्या है?
चंद्रयान 2 के लैंडर का नाम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ विक्रम ए साराभाई के नाम पर रखा गया है. लैंडर को चंद्र सतह पर एक नरम लैंडिंग को निष्पादित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. लैंडर चाँद की सतह पर एक Soft लैंडिंग करता और रोवर को बाहर भेज देता। लैंडर तथा रोवर का वजन लगभग 1250 किलो है । स्टार्टिंग में, लैंडर रूस द्वारा भारत के साथ सहयोग से विकसित किए जाने की उम्मीद थी। लेकिन जब रूस ने 2015 से पहले लैंडर के विकास में अपनी असमर्थता जताई। तो भारतीय वैज्ञानिकों ने स्वतंत्र रूप से लैंडर को विकसित करने का निर्णय लिया।
ऑर्बिटर क्या है?
ऑर्बिटर की बात करें तो यह पृथ्वी से सीधे संपर्क बनाने के लिए भेजा गया, जो कि चंद्रमा से 100 KM की ऊँचाई पर चन्द्रमा के चक्कर काट रहा है और उसके द्वारा ही पृथ्वी पर चंद्रमा की पूरी जानकारी मिल रही है। अगर सब कुछ प्लान के मुताबिक हुआ होता तो ऑर्बिटर उच्च रिज़ॉल्यूशन कैमरा (Orbiter High Resolution Camera) लैंडर के ऑर्बिटर से अलग होने से पहले लैंडिंग साइट के उच्च रिज़ॉल्यूशन तस्वीर भेजता, जिससे हमें ये पता चलता की लैंडर किस तरह की जगह पर soft लैंडिंग कर रहा है । ऑर्बिटर को पांच पेलोड के साथ भेजे जाने का निर्णय लिया गया था, लेकिन बादमे 8 पेलोड लगाए गए।
8 पेलोड्स हैं जो ISRO को चांद की सतह पर होने वाली घटनाओं की जानकारी देगा.
1)टेरेन मैपिंग कैमरा का इस्तेमाल चंद्रयान-1 में भी किया गया था. यह चांद की सतह का हाई रिजोल्यूशन तस्वीर ले सकता है.
2)सॉफ्ट X-Ray स्पेक्ट्रोमीटर यह पेलोड चांद के X-Ray फ्लूरोसेन्स (XRF) स्पेक्ट्रा के बारे में जानकारी देगा.
3)सोलर X-Ray मॉनिटर ये पेलोड चांद की सतह पर 1 फीट की ऊंचाई तक की हाई रिजोल्यूशन की तस्वीर ले सकता है
4)इमेजिंग IR (इंफ्रा रेड) स्पेक्ट्रोमीटर इस पेलोड के दो मुख्य काम हैं- पहला, ये चांद की ग्लोबल मिनिरलोजिकल और वोलटाइल मैपिंग करेगा
5)ड्यूल फ्रिक्वेंसी सिन्थेटिक अपर्चर रडार इस पेलोड के तीन मुख्य काम हैं. पहला- ये चांद के पोलर रीजन के हाई रिजोल्यूशन मैपिंग करेगा
6)एट्मोस्फेरिक कॉम्पोजिशनल एक्सप्लोरर इस पेलोड का इस्तेमाल चंद्रयान-1 के लिए किए गए पेलोड से अपग्रेडेड है.
7)ड्यूल फ्रिक्वेंसी रेडियो साइंस ये पे लोड चांद के लूनर आयोनोस्फेयर के बारे में अध्ययन करेगा.
8)ऑर्बिटर हाई रिजोल्यूशन कैमरा ये पेलोड चांद की सतह पर 1 फीट की ऊंचाई तक की हाई रिजोल्यूशन की तस्वीर ले सकता है
रोवर क्या है?
चांद पर लैंडिंग के बाद लैंडर का दरवाजा खुलता और रोवर को बाहर निकलने में 4 घंटे तक का समय लगने वाला था और इसके इसके बहार निकलने के लगभग 15 मिनट के अंदर ही ISRO को लैंडिंग की तस्वीरें भी मिलती, आपको बता दें रोवर द्वारा ही चंद्रमा के सभी तस्वीरें और वहाँ मौजूद जानकारियों को इसरो तक पहुंचाया जाता। रोवर का वजन 27 किग्रा है और सौर ऊर्जा द्वारा संचालित होगा. चंद्रयान 2 का रोवर प्रज्ञान नाम संस्कृत से किया है जिसका मतलब है बुद्धिमता ,प्रज्ञान 6 पहियों वाला रोबोट वाहन है.यह केवल लैंडर के साथ संवाद कर सकता है। रोवर चन्द्रमा की सतह पर पहियों के सहारे चलेगा, मिट्टी और चट्टानों के नमूने एकत्र करेगा डाटा को ऊपर ऑर्बिटर के पास भेज देगा जहां से इसे पृथ्वी के स्टेशन पर भेज दिया जायेगा.
तो दोस्तो अब हम Chandrayaan-2 लॉन्च को देखते है
Chandrayaan-2 के लॉन्चिंग की बात की जाए तो यह पृथ्वी से चंद्रमा की ओर आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से 15 जुलाई को लगभग 2:51AM पर रवाना होना था, जिसको कुछ तकनीकी ख़राबी की वजह से रद्द कर दिया गया.
इसीका reason भी सही है क्युकी इसमे लगभग 1000cr रुपये लगे है। और हम risk नही लेना चाहते थे
इसलिए इसका समय बदल कर 22 जुलाई 02:43 PM कर दिया गया था. इसे चांद पर पहुंचने के लिए लगभग 40 दिन का समय लगा.
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतारा गया जहां आज तक दुनिया का कोई भी अंतरिक्ष यान नहीं उतारा गया है, ऐसा माना जा रहा है कि चंद्रमा के उस हिस्से मैं अच्छी लैंडिंग के लिए जितने प्रकाश और समतल जगह की जरूरत होती है वह Chandrayaan-2 को उस हिस्से में मिलने वाली है.
दिनांक 07 सितंबर 2019 को रात्रि 02 बजे चंद्रमा के धरातल से 2.1 किमी ऊपर विक्रम लेंडर का इसरो से फिलहाल सम्पर्क टूट गया है. दोबारा से लैन्डर से संपर्क किया जा रहा है. के़ सिवन ने कहा, 'विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई तक सामान्य तरीके से नीचे उतरा. इसके बाद लैंडर का धरती से संपर्क टूट गया. आंकड़ों का विश्लेषण किया जा रहा है.
हालांकि इसे हुम् failure नही कह सकते क्युकी पहिले की अभियान मैं भारत ने बहुत कुछ हासिल कर लिया है
पूरे इंडिया को रातके 2 बजे TV के सामने बैठना कोई आम बात नही है। माननीय PM मोदी भी वहा मौजूद थे। उनोने के सिवन को गले लगाया और हौसला दिया।
उसके अगले दिन यानी 8 सितंबर को, इसरो के चेयरपर्सन, डॉ॰ के सिवन ने घोषणा की है कि लैंडर को चंद्रमा की सतह पर ऑर्बिटर के थर्मल छवि की मदद से देखा गया है, और कहा कि ऑर्बिटर एवं अन्य एजेंसी कोशिश कर रही है लैंडर के साथ साफ्ट संचार स्थापित किया जा सके।
अगर ऑर्बिटर के ईंधन बात करे तो जो लॉन्च के समय करीब 1697 किलो था. अभी ऑर्बिटर में करीब 500 किलो ईंधन है जो उसे सात साल से ज्यादा समय तक काम करने की क्षमता प्रदान करता है. लेकिन, यह अंतरिक्ष के वातावरण पर भी निर्भर करता है।
वैज्ञानिक लगातार उससे संपर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं. विक्रम लैंडर से संपर्क होगा या नहीं ये तो बाद में पता चलेगा, लेकिन इसरो वैज्ञानिक और खुद इसरो चेयरमैन डॉ. के. सिवन भी इस बात का दावा कर चुके हैं कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चांद के चारों तरफ 7 साल से ज्यादा समय चक्कर लगा सकता है.
इसरो के वैज्ञानिकों का कहना है कि लैंडर विक्रम एक तरफ झुका दिखाई दे रहा है, ऐसे में कम्युनिकेशन लिंक वापस जोड़ने के लिए यह बेहद जरूरी है कि लैंडर का ऐंटीना ऑर्बिटर या ग्राउंड स्टेशन की दिशा में हो। हमने इससे पहले जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में गुम हो चुके स्पेसक्राफ्ट का पता लगाया है लेकिन यह उससे काफी अलग है।
हालाकि अभीतक कम्युनिकेशन करने की कोशिश चल रही है। जल्दि से जल्दि कमुनाकेशन हो जाए ओर भारत आगे जाए
ये थी जानकारी अबतक की । मैं भागवान से प्राथना करता हु की जल्दी से जल्दी संपर्क हो जाए। ओर ये मिशन 100% सक्सेस हो जाए।
आशा है की ये वीडियो आपको पसंद आया हो।
जैसे ही कोई नई खबर अति है हम आपको जरूर update करेंगे।
तो दोस्तो आज हम बात करने वाले है चंद्रयान-२ के बारे मैं।
इससे पहले हम चंद्रयान का इतिहास देख लेते हैं।
2008 के चंद्रयान-1 के सफल प्रक्षेपण के बाद भारत ने Chandrayaan-2 को चांद पर भेजने की घोषणा कर दी , सभी जानते हैं कि सन 2008 में भारत ने अपना पहला चंद्र अभियान शुरू किया था जिसमें Chandrayaan-1 को चाँद की कक्षा (Orbit) में भेजने में भारत ने अपने पहले ही कोशिश में सफलता हासिल की थी लेकिन आपको बता दें कि यह यान चंद्रमा पर नहीं उतरा था।
लेकिन चंद्रयान-2 मिशन पहले मिशन से काफी ज्यादा अलग है क्योंकि इस मिशन में भारत अपने चंद्रयान में Lander Orbiter और Rover को भी चांद पर लेकर जाने वाला था।
लेकिन चंद्रयान -२ में ऐसा क्या ख़ास है जो इसे पूरी तरह अलग बनाता है।
well ,
चंद्रयान-२ यह भारत में 10 साल के अंदर चंद्रमा पर जाने वाला दूसरा मिशन है।
चंद्रयान-२ का लांचर पूरी तरह से स्वदेशी है और इसे भारत में निर्मित GSLV Mk-III (जीएसएलवी मार्क-III) Rocket द्वारा अंतरिक्ष में भेजा गया है।(जिसे बाहुबली राकेट भी कहते है)
चंद्रयान-२ में 3 मॉड्यूल शामिल है जिनमें लैंडर, ऑर्बिटर और रोवर शामिल था।
चंद्रयान-२ में लेंडर को "विक्रम" नाम दिया गया , वहीं रोवर का नाम "प्रज्ञान" रखा गया है जिसका वजन 3.8 टन यानी कि 3800 किलो है।
अब ये सब तो ठीक है पर ये मिशन इतना ख़ास क्यों है, तो फ्रेंड्स
1. ये चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र पर एक Soft लैंडिंग का संचालन करने वाला पहला अंतरिक्ष मिशन था ।
2. पहला भारतीय मिशन, जो घरेलू तकनीक के साथ चंद्र सतह पर एक soft लैंडिंग का प्रयास करता।
3. पहला भारतीय मिशन, जो घरेलू तकनीक के साथ चंद्र के क्षेत्र का पता लगाने का प्रयास करता।
4. विश्व का 4th देश जो चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा।
चंद्रयान2 को जानने से पहले हमे लैंडर, ऑर्बिटर और रोवर क्या है ये समजना जरूरी है।
लैंडर क्या है?
चंद्रयान 2 के लैंडर का नाम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ विक्रम ए साराभाई के नाम पर रखा गया है. लैंडर को चंद्र सतह पर एक नरम लैंडिंग को निष्पादित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. लैंडर चाँद की सतह पर एक Soft लैंडिंग करता और रोवर को बाहर भेज देता। लैंडर तथा रोवर का वजन लगभग 1250 किलो है । स्टार्टिंग में, लैंडर रूस द्वारा भारत के साथ सहयोग से विकसित किए जाने की उम्मीद थी। लेकिन जब रूस ने 2015 से पहले लैंडर के विकास में अपनी असमर्थता जताई। तो भारतीय वैज्ञानिकों ने स्वतंत्र रूप से लैंडर को विकसित करने का निर्णय लिया।
ऑर्बिटर क्या है?
ऑर्बिटर की बात करें तो यह पृथ्वी से सीधे संपर्क बनाने के लिए भेजा गया, जो कि चंद्रमा से 100 KM की ऊँचाई पर चन्द्रमा के चक्कर काट रहा है और उसके द्वारा ही पृथ्वी पर चंद्रमा की पूरी जानकारी मिल रही है। अगर सब कुछ प्लान के मुताबिक हुआ होता तो ऑर्बिटर उच्च रिज़ॉल्यूशन कैमरा (Orbiter High Resolution Camera) लैंडर के ऑर्बिटर से अलग होने से पहले लैंडिंग साइट के उच्च रिज़ॉल्यूशन तस्वीर भेजता, जिससे हमें ये पता चलता की लैंडर किस तरह की जगह पर soft लैंडिंग कर रहा है । ऑर्बिटर को पांच पेलोड के साथ भेजे जाने का निर्णय लिया गया था, लेकिन बादमे 8 पेलोड लगाए गए।
8 पेलोड्स हैं जो ISRO को चांद की सतह पर होने वाली घटनाओं की जानकारी देगा.
1)टेरेन मैपिंग कैमरा का इस्तेमाल चंद्रयान-1 में भी किया गया था. यह चांद की सतह का हाई रिजोल्यूशन तस्वीर ले सकता है.
2)सॉफ्ट X-Ray स्पेक्ट्रोमीटर यह पेलोड चांद के X-Ray फ्लूरोसेन्स (XRF) स्पेक्ट्रा के बारे में जानकारी देगा.
3)सोलर X-Ray मॉनिटर ये पेलोड चांद की सतह पर 1 फीट की ऊंचाई तक की हाई रिजोल्यूशन की तस्वीर ले सकता है
4)इमेजिंग IR (इंफ्रा रेड) स्पेक्ट्रोमीटर इस पेलोड के दो मुख्य काम हैं- पहला, ये चांद की ग्लोबल मिनिरलोजिकल और वोलटाइल मैपिंग करेगा
5)ड्यूल फ्रिक्वेंसी सिन्थेटिक अपर्चर रडार इस पेलोड के तीन मुख्य काम हैं. पहला- ये चांद के पोलर रीजन के हाई रिजोल्यूशन मैपिंग करेगा
6)एट्मोस्फेरिक कॉम्पोजिशनल एक्सप्लोरर इस पेलोड का इस्तेमाल चंद्रयान-1 के लिए किए गए पेलोड से अपग्रेडेड है.
7)ड्यूल फ्रिक्वेंसी रेडियो साइंस ये पे लोड चांद के लूनर आयोनोस्फेयर के बारे में अध्ययन करेगा.
8)ऑर्बिटर हाई रिजोल्यूशन कैमरा ये पेलोड चांद की सतह पर 1 फीट की ऊंचाई तक की हाई रिजोल्यूशन की तस्वीर ले सकता है
रोवर क्या है?
चांद पर लैंडिंग के बाद लैंडर का दरवाजा खुलता और रोवर को बाहर निकलने में 4 घंटे तक का समय लगने वाला था और इसके इसके बहार निकलने के लगभग 15 मिनट के अंदर ही ISRO को लैंडिंग की तस्वीरें भी मिलती, आपको बता दें रोवर द्वारा ही चंद्रमा के सभी तस्वीरें और वहाँ मौजूद जानकारियों को इसरो तक पहुंचाया जाता। रोवर का वजन 27 किग्रा है और सौर ऊर्जा द्वारा संचालित होगा. चंद्रयान 2 का रोवर प्रज्ञान नाम संस्कृत से किया है जिसका मतलब है बुद्धिमता ,प्रज्ञान 6 पहियों वाला रोबोट वाहन है.यह केवल लैंडर के साथ संवाद कर सकता है। रोवर चन्द्रमा की सतह पर पहियों के सहारे चलेगा, मिट्टी और चट्टानों के नमूने एकत्र करेगा डाटा को ऊपर ऑर्बिटर के पास भेज देगा जहां से इसे पृथ्वी के स्टेशन पर भेज दिया जायेगा.
तो दोस्तो अब हम Chandrayaan-2 लॉन्च को देखते है
Chandrayaan-2 के लॉन्चिंग की बात की जाए तो यह पृथ्वी से चंद्रमा की ओर आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से 15 जुलाई को लगभग 2:51AM पर रवाना होना था, जिसको कुछ तकनीकी ख़राबी की वजह से रद्द कर दिया गया.
इसीका reason भी सही है क्युकी इसमे लगभग 1000cr रुपये लगे है। और हम risk नही लेना चाहते थे
इसलिए इसका समय बदल कर 22 जुलाई 02:43 PM कर दिया गया था. इसे चांद पर पहुंचने के लिए लगभग 40 दिन का समय लगा.
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतारा गया जहां आज तक दुनिया का कोई भी अंतरिक्ष यान नहीं उतारा गया है, ऐसा माना जा रहा है कि चंद्रमा के उस हिस्से मैं अच्छी लैंडिंग के लिए जितने प्रकाश और समतल जगह की जरूरत होती है वह Chandrayaan-2 को उस हिस्से में मिलने वाली है.
दिनांक 07 सितंबर 2019 को रात्रि 02 बजे चंद्रमा के धरातल से 2.1 किमी ऊपर विक्रम लेंडर का इसरो से फिलहाल सम्पर्क टूट गया है. दोबारा से लैन्डर से संपर्क किया जा रहा है. के़ सिवन ने कहा, 'विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई तक सामान्य तरीके से नीचे उतरा. इसके बाद लैंडर का धरती से संपर्क टूट गया. आंकड़ों का विश्लेषण किया जा रहा है.
हालांकि इसे हुम् failure नही कह सकते क्युकी पहिले की अभियान मैं भारत ने बहुत कुछ हासिल कर लिया है
पूरे इंडिया को रातके 2 बजे TV के सामने बैठना कोई आम बात नही है। माननीय PM मोदी भी वहा मौजूद थे। उनोने के सिवन को गले लगाया और हौसला दिया।
उसके अगले दिन यानी 8 सितंबर को, इसरो के चेयरपर्सन, डॉ॰ के सिवन ने घोषणा की है कि लैंडर को चंद्रमा की सतह पर ऑर्बिटर के थर्मल छवि की मदद से देखा गया है, और कहा कि ऑर्बिटर एवं अन्य एजेंसी कोशिश कर रही है लैंडर के साथ साफ्ट संचार स्थापित किया जा सके।
अगर ऑर्बिटर के ईंधन बात करे तो जो लॉन्च के समय करीब 1697 किलो था. अभी ऑर्बिटर में करीब 500 किलो ईंधन है जो उसे सात साल से ज्यादा समय तक काम करने की क्षमता प्रदान करता है. लेकिन, यह अंतरिक्ष के वातावरण पर भी निर्भर करता है।
वैज्ञानिक लगातार उससे संपर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं. विक्रम लैंडर से संपर्क होगा या नहीं ये तो बाद में पता चलेगा, लेकिन इसरो वैज्ञानिक और खुद इसरो चेयरमैन डॉ. के. सिवन भी इस बात का दावा कर चुके हैं कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चांद के चारों तरफ 7 साल से ज्यादा समय चक्कर लगा सकता है.
इसरो के वैज्ञानिकों का कहना है कि लैंडर विक्रम एक तरफ झुका दिखाई दे रहा है, ऐसे में कम्युनिकेशन लिंक वापस जोड़ने के लिए यह बेहद जरूरी है कि लैंडर का ऐंटीना ऑर्बिटर या ग्राउंड स्टेशन की दिशा में हो। हमने इससे पहले जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में गुम हो चुके स्पेसक्राफ्ट का पता लगाया है लेकिन यह उससे काफी अलग है।
हालाकि अभीतक कम्युनिकेशन करने की कोशिश चल रही है। जल्दि से जल्दि कमुनाकेशन हो जाए ओर भारत आगे जाए
ये थी जानकारी अबतक की । मैं भागवान से प्राथना करता हु की जल्दी से जल्दी संपर्क हो जाए। ओर ये मिशन 100% सक्सेस हो जाए।
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chadrayan 2 all information चंद्रयान-२
Reviewed by Ronak shah
on
September 12, 2019
Rating:
Great Article
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